राष्ट्रीय सहकारी नीति (National Cooperative Policy) – ग्रामीण विकास की नई दिशा

भारत एक ऐसा देश है जहां “सहयोग” और “मिलकर काम करना” सदियों से हमारी संस्कृति का हिस्सा रहा है। इसी भावना को आगे बढ़ाते हुए, भारत सरकार ने राष्ट्रीय सहकारी नीति का अनावरण किया है। यह नीति केवल कागजी कार्रवाई नहीं है, बल्कि यह हमारे ग्रामीण क्षेत्रों, किसानों, महिलाओं, दलितों और आदिवासियों को सशक्त बनाने और देश के आर्थिक विकास में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने का एक महत्वाकांक्षी खाका है। यह नई नीति भारत के सहकारी आंदोलन को नई दिशा और गति प्रदान करेगी, जिससे “सहकार से समृद्धि” का सपना साकार हो सके।

यह नीति 2002 में बनी पिछली सहकारी नीति का स्थान लेती है और इसे अगले दो दशकों (2025-2045) के लिए सहकारिता क्षेत्र के विकास के लिए एक रोडमैप के रूप में देखा जा रहा है। इसका मुख्य उद्देश्य सहकारी संस्थाओं को अधिक पेशेवर, पारदर्शी और आत्मनिर्भर बनाना है, ताकि वे देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान दे सकें।

 

सहकारिता का महत्व और इसकी नई दिशा

 

सहकारिता का अर्थ है मिलकर काम करना, साझा लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एकजुट होना। भारत में, सहकारी समितियां ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ रही हैं, विशेषकर कृषि, डेयरी और मत्स्य पालन जैसे क्षेत्रों में। ये समितियां किसानों को ऋण, बीज, खाद और बाजार तक पहुंच प्रदान करती हैं, जिससे उनकी आय बढ़ती है और वे सशक्त होते हैं। नई राष्ट्रीय सहकारी नीति इस महत्व को समझती है और इसे और मजबूत करने का लक्ष्य रखती है।

यह नीति न केवल पारंपरिक क्षेत्रों को मजबूत करेगी बल्कि नए और उभरते क्षेत्रों जैसे पर्यटन, टैक्सी सेवाएं, बीमा और हरित ऊर्जा में भी सहकारी समितियों के प्रवेश को प्रोत्साहित करेगी। यह सहकारिता को केवल ग्रामीण सहायता तक सीमित न रखकर इसे एक व्यापक आर्थिक विकास मॉडल के रूप में विकसित करने का प्रयास है। इस विस्तार से युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे।

 

राष्ट्रीय सहकारी नीति के प्रमुख उद्देश्य और विशेषताएं

 

यह नई नीति कई महत्वपूर्ण उद्देश्यों के साथ तैयार की गई है, जो इसे पहले से कहीं अधिक परिणामोन्मुखी बनाती है:

  • प्रत्येक गांव में एक सहकारी संस्था: नीति का एक प्रमुख लक्ष्य है कि देश के प्रत्येक गांव में कम से कम एक सहकारी संस्था स्थापित की जाए। इसमें प्राथमिक कृषि ऋण समितियां (PACS), प्राथमिक डेयरी सहकारी समितियां, प्राथमिक मत्स्य सहकारी समितियां या कोई अन्य प्राथमिक इकाई शामिल हो सकती है। यह जमीनी स्तर पर सहकारिता आंदोलन को मजबूत करेगा।
  • आर्थिक योगदान में वृद्धि: इस नीति का लक्ष्य 2034 तक देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में सहकारी क्षेत्र के योगदान को तीन गुना बढ़ाना है। यह एक बड़ा लक्ष्य है, जिसे प्राप्त करने के लिए व्यापक योजनाएं बनाई गई हैं।
  • सदस्यता का विस्तार: 50 करोड़ से अधिक लोगों को सक्रिय सहकारी भागीदारी में लाना इस नीति का एक अन्य महत्वपूर्ण उद्देश्य है। इसमें वे लोग भी शामिल होंगे जो अभी तक सहकारी क्षेत्र से नहीं जुड़े हैं या जिनकी भागीदारी निष्क्रिय है।
  • डिजिटलीकरण और पारदर्शिता: सहकारी समितियों के संचालन में पारदर्शिता और दक्षता बढ़ाने के लिए पूर्ण कंप्यूटरीकरण और प्रौद्योगिकी-आधारित शासन पर जोर दिया गया है। PACS के कंप्यूटरीकरण से लेकर क्लस्टर निगरानी प्रणाली तक, सब कुछ डिजिटलीकरण की ओर अग्रसर है।
  • नए क्षेत्रों में विस्तार: नीति पर्यटन, टैक्सी सेवाओं, बीमा और हरित ऊर्जा जैसे गैर-पारंपरिक क्षेत्रों में भी सहकारी समितियों को स्थापित करने और बढ़ावा देने का प्रस्ताव करती है। इससे विविधीकरण बढ़ेगा और सदस्यों के लिए आय के नए स्रोत बनेंगे।
  • मॉडल सहकारी गांव: प्रत्येक तहसील में पांच मॉडल सहकारी गांव विकसित करने का लक्ष्य रखा गया है। ये गांव सहकारी-नेतृत्व वाले विकास के उत्कृष्ट केंद्र बनेंगे, जो अन्य गांवों के लिए प्रेरणा का स्रोत होंगे।
  • पेशेवर प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण: त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय (TSU) की स्थापना जैसे कदम सहकारी क्षेत्र में पेशेवर प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण को बढ़ावा देंगे, जिससे युवाओं को सहकारिता में करियर बनाने का अवसर मिलेगा। (संबंधित जानकारी के लिए आप राष्ट्रीय सहकारी संघ की वेबसाइट देख सकते हैं: https://www.ncui.coop/)

यह नीति यह सुनिश्चित करती है कि सहकारिता केवल एक सामाजिक आंदोलन न रहे, बल्कि एक मजबूत, आर्थिक रूप से व्यवहार्य और आत्मनिर्भर इकाई के रूप में उभरे।

 

सहकारिता का भविष्य और “विकसित भारत 2047” का लक्ष्य

 

राष्ट्रीय सहकारी नीति का अनावरण ऐसे समय में हुआ है जब भारत “विकसित भारत 2047” के लक्ष्य की ओर अग्रसर है। सहकारिता इस लक्ष्य को प्राप्त करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है क्योंकि इसमें सभी वर्गों को शामिल करते हुए समावेशी विकास सुनिश्चित करने की क्षमता है। यह छोटे-छोटे पूंजी निवेशों को एक साथ लाकर बड़े पैमाने के उद्यम बनाने की अनूठी क्षमता रखती है, जिससे करोड़ों लोगों को आर्थिक गतिविधियों में शामिल किया जा सकता है।

सरकार का मानना है कि सहकारी क्षेत्र में ग्रामीण और कृषि पारिस्थितिकी तंत्र के साथ-साथ देश के गरीब लोगों को भारत की अर्थव्यवस्था का एक विश्वसनीय और अभिन्न अंग बनाने की क्षमता है। इस नीति के तहत, PACS को विविध गतिविधियों जैसे ईंधन आउटलेट, एलपीजी वितरण, जन औषधि केंद्र, सीएससी और यहां तक कि ‘हर घर जल’ और ‘पीएम सूर्य घर योजना’ जैसी योजनाओं को लागू करने के लिए सशक्त किया जा रहा है। ये सभी कदम ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देंगे और आत्मनिर्भरता लाएंगे।

इस नीति का उद्देश्य सहकारी समितियों में युवाओं को आकर्षित करना और उन्हें सर्वोत्तम शिक्षा प्राप्त करने के बाद सहकारिता को एक करियर विकल्प के रूप में चुनने के लिए प्रोत्साहित करना भी है। यह सब मिलकर एक मजबूत सहकारी पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करेगा जो न केवल आर्थिक विकास को बढ़ावा देगा बल्कि सामाजिक समानता और सशक्तिकरण को भी सुनिश्चित करेगा।

 

निष्कर्ष

 

राष्ट्रीय सहकारी नीति भारत के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। यह सहकारिता के सिद्धांतों और मूल्यों को मजबूत करते हुए देश के समावेशी और जीवंत विकास में सीधे योगदान करने की परिकल्पना करती है। यह नीति सहकारी आंदोलन को जमीनी स्तर तक गहरा करने, सहकारी-आधारित आर्थिक विकास मॉडल को बढ़ावा देने और सहकारी समितियों को सफल बनाने के लिए एक अनुकूल कानूनी, आर्थिक और संस्थागत ढांचा तैयार करने पर केंद्रित है। यह “सहकार से समृद्धि” के प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण को साकार करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है, जो आगामी दशकों में भारत के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। हमें उम्मीद है कि यह नीति भारत के हर गांव को सशक्त करेगी और देश को एक विकसित राष्ट्र बनाने में मील का पत्थर साबित होगी।


 

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQ Section)

 

 

Q1: राष्ट्रीय सहकारी नीति क्या है?

 

A1: राष्ट्रीय सहकारी नीति भारत सरकार द्वारा जारी एक नया ढांचा है जिसका उद्देश्य देश में सहकारी आंदोलन को मजबूत करना, उसे आधुनिक बनाना और उसे अगले दो दशकों (2025-2045) के लिए विकसित करना है।

 

Q2: यह नीति किस पिछली नीति का स्थान लेती है?

 

A2: यह नई नीति 2002 में बनी पिछली राष्ट्रीय सहकारी नीति का स्थान लेती है।

 

Q3: इस नीति के प्रमुख उद्देश्य क्या हैं?

 

A3: इसके प्रमुख उद्देश्यों में प्रत्येक गांव में कम से कम एक सहकारी संस्था स्थापित करना, 2034 तक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में सहकारी क्षेत्र का योगदान तीन गुना बढ़ाना, और 50 करोड़ लोगों को सक्रिय सहकारी भागीदारी में लाना शामिल है।

 

Q4: क्या यह नीति केवल कृषि क्षेत्र तक सीमित है?

 

A4: नहीं, यह नीति कृषि के साथ-साथ पर्यटन, टैक्सी सेवाएं, बीमा और हरित ऊर्जा जैसे नए और उभरते क्षेत्रों में भी सहकारी समितियों के विस्तार को प्रोत्साहित करती है।

 

Q5: राष्ट्रीय सहकारी नीति से आम आदमी को क्या लाभ होगा?

 

A5: यह नीति ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़ाएगी, किसानों और छोटे व्यवसायियों को ऋण और बाजार तक बेहतर पहुंच प्रदान करेगी, और महिलाओं, दलितों और आदिवासियों सहित सभी वर्गों के लोगों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाएगी।

Leave a Comment